Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022 किसानों के लिए बड़ी खबर, हरे मटर की खेती करके, करें मटर की बंपर पैदावार, जिससे किसान मात्र चार महिने में कमा सकता है लाखों रुपये
Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022 किसानों के लिए बड़ी खबर दलहनी सब्जियों में मटर का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। मटर की खेती से जहां एक ओर कम समय में पैदावार प्राप्त की जा सकती है वहीं ये भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में भी सहायक है। फसल चक्र के अनुसार यदि इसकी खेती की जाए तो इससे भूमि उपजाऊ बनती है। मटर में मौजूद राइजोबियम जीवाणु भूमि को उपजाऊ बनाने में सहायत है। यदि अक्टूर व नबंवर माह के मध्य इसकी अगेती किस्मों की खेती की जाए तो अधिक पैदावार के साथ ही भूरपूर मुनाफा कमाया जा सकता है। आजकल तो बाजार में साल भर मटर को संरक्षित कर बेचा जाता है। वहीं इसको सूखाकर मटर दाल के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है। तो आइए जानते हैं कि इस उपयोगी मटर की अगेती फसल की खेती कर किस प्रकार अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है।
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हरे मटर की खेती क्या है
Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022 हरी मटर, जिसे मटर के रूप में भी जाना जाता है, भारत में सब्जी की फसलों में से एक है और मूल रूप से इस फसल की खेती इसकी हरी फली के लिए की जाती है। हरी मटर Leguminaceae परिवार से संबंधित है। हरी मटर का उपयोग सब्जी पकाने, सूप और जमे हुए डिब्बाबंद भोजन में भी किया जाता है। हरा मटर का भूसा एक पौष्टिक चारा है और इसका इस्तेमाल किसी भी जानवर (पशुधन) के लिए किया जाता है।
भारत में प्रमुख हरी मटर उत्पादन राज्य– कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, पंजाब, असम, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, बिहार और उड़ीसा।
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हरे मटर से स्वास्थ्य में मिलने वाले लाभ (Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022)
Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022 हरे मटर से स्वास्थ्य में मिलने वाले लाभ इस प्रकार है:-
- हरी मटर वजन कम करने में सहायता करती है।
- हरी मटर रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करती है।
- हरी मटर झुर्रियों, अल्जाइमर, गठिया, ब्रोंकाइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस की रोकथाम में मदद करती है।
- हरी मटर एंटी-एजिंग, मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली और उच्च ऊर्जा का स्रोत है।
- पेट के कैंसर को रोकने में हरी मटर मदद कर सकती है।
- हरी मटर पाचन में सुधार करने में मदद कर सकती है।
हरे मटर की किस्में एवं उनकी विशेषताएं (Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022)
Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022 हरे मटर की ग्यारह प्रकार की किस्में होती है, जो इस प्रकार है:-
01. आर्किल- यह व्यापक रूप से उगाई जाने वाली यह प्रजाति फ्रांस से आई विदेशी प्रजाति है। इसका दाना निकलने का प्रतिशत अधिक (40 प्रतिशत) है। यह ताजा बाजार में बेचने और निर्जलीकरण दोनों के लिए उपयुक्त है। पहली चुनाई बोआई के बाद 60-65 दिन लेती है। हरी फली के उपज 8-10 टन प्रति हेक्टेयर है।
02. बी.एल.- अगेती मटर – 7 (वी एल – 7)- विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा में विकसित प्रजाति है। इसका छिलका उतारने पर 42 प्रतिशत दाना के साथ 10 टन / हेक्टेयर की औसत उपज प्राप्त होती है।
03. जवाहर मटर 3 (जे एम 3, अर्ली दिसम्बर)- यह प्रजाति जबलपुर में टी 19 व अर्ली बैजर के संकरण के बाद वरणों द्वारा विकसित की गई है। इस प्रजाति में दाना प्राप्ति प्रतिशत अधिक (45 प्रतिशत) होता है। बुवाई के 50-50 दिनों के बाद पहली तुड़ाई प्रारंभ होती है। औसत उपज 4 टन/हैक्टेयर है।
04. जवाहर मटर – 4 ( जे एम 4)- यह प्रजाति जबलपुर में संकर टी 19 और लिटिल मार्वल से उन्नत पीड़ी वरणों द्वारा विकसित की गई थी। इसकी 70 दिनों के बाद पहली तुड़ाई शुरू की जा सकती है। इसके 40 प्रतिशत निकाले गए दानों से युक्त औसत फल उपज 7 टन/ हैक्टेयर होती है।
05. हरभजन (ईसी 33866)- यह प्रजाति विदेशी आनुवंशिक सामग्री से वरण द्वारा जबलपुर में विकसित की गई है। यह अधिक अगेती प्रजाति है और इसकी पहली चुनाई बोआई के 45 दिनों के बाद की जा सकती है। इससे औसत फली उपज 3 टन/हैक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
06. पंत मटर-2 (पी एम-2)- यह पंतनगर में संकर अर्ली बैजर व आई पी, 3 (पंत उपहार) से वंशावली वरण द्वारा विकसित हैं। इसकी बुवाई के 60- 65 दिन बाद पहली चुनाई की जा सकती है। यह भी चूर्णिल फफूंदी के प्रति अधिक ग्रहणशील है। इसकी औसत उपज 7 – 8 टन प्रति हैक्टेयर प्राप्त की जा सकती हैं।
07. मटर अगेता (ई-6)- यह संकर मैसी जेम व हरे बोना से वंशावली वरण द्वारा लुधियाना पर विकसित बौनी, अधिक उपज देने वाली प्रजाति है। इसकी पहली चुनाई बोआई के बाद 50-55 दिनों के भीतर शुरू की जा सकती है। यह उच्च तापमान सहिष्णु है। 44 प्रतिश दाना से युक्त औसत फली उपज 6 टन/हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
08. जवाहर पी -4- यह जबलपुर में प्रजाति छोटी पहाडिय़ों के लिए विकसित चूर्णिल फफूंदी प्रतिरोधी और म्लानि सहिष्णु प्रजाति है। इसकी पहली चुनाई छोटी पहाडिय़ों में 60 दिन के बाद और मैदानों में 70 दिन के बाद शुरू होती है। छोटी पहाडिय़ों में औसत फली उपज 3-4 टन/हेक्टेयर और मैदानों में 9 टन/हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
09. पंत सब्जी मटर- यह जल्दी तैयार होने वाली प्रजाति है। इसकी फलियां लंबी और 8-10 बीजों से युक्त होती हैं। इसकी हरी फली उपज 9-10 टन प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
10. पंत सब्जी मटर 5- यह जल्दी तैयार होने वाली प्रजाति है। यह प्रजाति चूर्णिल फफूंदी रोग प्रतिरोधी होती है। इसकी पहली हरी फली चुनाई 60 से 65 दिनों के भीतर की जा सकती है और बीज परिपक्वता बोआई के 100 से लेकर 110 दिनों में होती है। इसकी हरी फली उपज 90-100 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। यह प्रजाति कुमाऊं की पहाडिय़ों और उत्तराखंड के मैदानों में खेती के लिए उपयुक्त है।
11. इसके अलावा जल्दी तैयार होने वाली अन्य अगेती किस्में- काशी नंदिनी, काशी मुक्ति, काशी उदय और काशी अगेती किस्में है जो 50 से 60 दिन में तैयार हो जाती हैं।
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हरे मटर की बुवाई कैसे करें और उसका तरीका (Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022)
Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022 मटर के बीजों को बुवाई से पहले रात भर पानी में भिगोने से बेहतर बीज का अंकुरण होता है। हरी मटर आमतौर पर व्यापक कास्टिंग विधि या डिबलिंग विधि द्वारा बोई जाती है। मटर के बीजों के लिए बुवाई का समय खेती के क्षेत्र पर निर्भर है। भारत में, आमतौर पर रबी सीजन की फसल की बुवाई अक्टूबर से नवंबर के मध्य से मैदानी इलाकों में शुरू होती है। पहाड़ियों में, यह मार्च के मध्य से मई के अंत तक होगा। उच्च पैदावार प्राप्त करने के लिए, 1 नवंबर के सप्ताह के दौरान बीज की बुवाई को प्राथमिकता दी जाती है।
हरे मटर के लिए जरुरी मिट्टी एवं जलवायु (Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022)
Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022 हरे मटर के लिए जरुरी मिट्टी एवं जलवायु इस प्रकार है:-
मिट्टी की आवश्यकता- हरी मटर की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। हालाँकि, वे 6 से 8 की पीएच रेंज के साथ अच्छी तरह से सूखा मिट्टी में सबसे अच्छा विकसित होते हैं। अच्छे कार्बनिक पदार्थों के साथ मिट्टी में मटर की अच्छी उपज और गुणवत्ता होगी। उपयुक्त सड़ा हुआ फार्म यार्ड खाद (F.M.Y) भूमि की तैयारी के समय लगाया जा सकता है। मिट्टी में किसी भी तरह के पोषक तत्वों की कमी का पता लगाने के लिए, खेती की योजना बनाने से पहले मिट्टी का परीक्षण करना चाहिए।
जलवायु की आवश्यकता- हरी मटर लगाते समय कृषि जलवायु की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है; यह बुवाई के समय को निर्धारित करता है, फसल के रोटेशन में जगह। नम और ठंडे क्षेत्रों में हरी मटर सबसे अच्छी होती है। हरी मटर की खेती के लिए आदर्श तापमान 10C से 30C के बीच है। 30C से ऊपर के तापमान में खराब पैदावार हो सकती है। हरी मटर की खेती में मिट्टी की नमी की मात्रा फूल और फली के विकास की आवश्यकता होती है। इसकी फसल वृद्धि के लिए 500 मिमी की आदर्श वर्षा की आवश्यकता होती है।
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मटर के पौधों में लगने वाले रोग एवं रोकथाम के उपाय (Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022)
Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022 मटर के पौधों में लगने वाले रोग एवं रोकथाम के उपाय इस प्रकार है:-
01. रतुआ रोग
उपाय- इस क़िस्म का रोग मटर के पौधों की पत्तियों पर आक्रमण करता है। इस रोग के लग जाने से पत्तियों पर पीले रंग के फफोले दिखाई देने लगते है, तथा रोग से अधिक प्रभावित होने पर पौधे की सम्पूर्ण पत्ती पीली होकर गिर जाती है, तथा कुछ समय पश्चात् ही पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है। इस रोग से बचाव के लिए मटर के पौधों पर नीम के तेल या काढ़े का छिड़काव करना होता है।
02. चूर्णी फफूंदी रोग
उपाय- इस किस्म का रोग पौधों पर नीचे से ऊपर की और आक्रमण करता है, तथा रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर सफ़ेद रंग के धब्बे नजर आने लगते है। रोग का प्रभाव अधिक बढ़ जाने पर पौधा पूरी तरह से विकास करना बंद कर देता है। कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।
03. तुलासिता रोग
उपाय- तुलासिता का रोग पौधों की पत्तियों की दोनों सतह पर आक्रमण करता है, जिसके बाद पत्ती पर पीले रंग के धब्बे बनने लगते है, तथा पत्ती की निचली सतह पर रूई के रूप में सफ़ेद फफूंद लगने लगती है। इस रोग से प्रभावित पौधा विकास करना बंद कर देता है। मैन्कोजेब या जिनेब की उचित मात्रा का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।
04. चेपा रोग
उपाय- चेपा रोग को माहू नाम से भी जानते है, जिसमे छोटे आकर के कीट होते है, जो हरे और पीले रंग के होते है। यह सभी कीट समूह के रूप में पौधों पर आक्रमण करते है। जिसके बाद यह रोग पौधों का रस चूसकर उसके विकास को पूरी तरह से रोक देता है। इस रोग से बचाव के लिए मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिड़काव मटर के पौधों पर करना होता है।
05. फली छेदक रोग
उपाय- इस किस्म का रोग अतिरिक्त प्रभावशाली माना जाता है, जो पैदावार को अधिक हानि पहुँचाता है। इस कीट का लार्वा फली में घुसकर उसे अंदर से खाकर नष्ट कर देता है, जिससे फली के सभी दाने ख़राब हो जाते है। इस रोग से बचाव के लिए क्लोरपाइरीफास का छिड़काव पौधों पर करना होता है।
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मटर की खेती के लिए आवश्यक खाद एवं उर्वरक (Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022)
Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022 मटर की फसल दलहनी वर्ग में आती है। अतः इसे नत्रजन की विशेष आवश्यकता नहीं होती है। प्रारंभिक अवस्था में राइजोबियम बैक्टीरिया के क्रियाशील होने तक 10-20 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त 50-60 किलोग्राम फास्फोरस व 35-40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना आवश्यक होता है। नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश उर्वरक बुवाई के समय ही खेत में दिए जाते हैं। उर्वरक सदैव बीज की कतारों से 5 सेमी. की दूरी पर बीज सतह से 3-5 सेंमी. की गहराई पर डालने चाहिए।
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मटर की खेती के लिए आवश्यक सिंचाई (Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022)
Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022 मटर की देशी व उन्नतशील जातियों में दो सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। शीतकालीन वर्षा हो जाने पर दूसरी सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती। पहली सिंचाई फूल निकलते समय बोने के 45 दिन बाद व दूसरी सिंचाई आवश्यकता पड़ने पर फली बनते समय, बोने के 60 दिन बाद करते हैं।
साधारणतया मटर को 20-25 हेक्टेयर सेंमी. पानी की आवश्यकता होती है। सिंचाई सदैव हल्की करनी चाहिए। अन्यथा ग्रंथिकाओं में स्थित राइजोबियम जीवाणुओं की क्रियाशीलता ऑक्सीजन के अभाव में शिथिल पड़ जाती है जिसके परिणामस्वरुप पौधों में वायुमण्डलीय नत्रजन का स्थिरीकरण बाधित हो जाने के कारण पौधे पीले पड़ जाते हैं।
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मटर की फसल में निराई-गुड़ाई
(Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022)
Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022 मटर की फसल की बुवाई के 35-40 दिन तक फसल को खरपतवारों से बचाना अति आवश्यक होता है। आवश्यकतानुसार एक या दो निराई बोने के 30-35 दिन बाद करनी चाहिए। रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण करने के लिए 1 किग्रा. फ्लुक्लोरेलिन ( बेसालीन ) का 800-1000 ली. पानी में घोल बनाकर, फसल के अंकुरण से पहले, एक हेक्टेयर में छिड़ककर नम मिट्टी में 4-5 सेंमी. गहरे तक हैरो या कल्टीवेटर की सहायता से मिला देना चाहिए।
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मटर की फसल की तुडाई एवं कटाई (Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022)
Matar Ki Kheti Kaise Karen-2022 सब्जी के लिए बोई गई फसल जनवरी के मध्य से फरवरी के अंत तक फलियां देती है। फलियों को 10-12 दिन के अंतर पर, तीन-चार बार में तोड़ते हैं। अगेती जातियां, जैसे अर्ली दिसंबर, दिसंबर के अंत तक फलियां देने लगती है। फलियों को सब्जियों के लिए तोड़ते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि फलियों में दाने पूर्णतया भर गए हो और फलियों के छिलके का रंग हरा हो। छिलके का रंग पीला पड़ने पर बाजार में फलियों की कीमत कम मिलती है।
दाने के लिए बोई गई फसल सामान्य अवस्थाओं में 115-125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। फसल मार्च व अप्रैल के प्रारंभ तक, बोने के समय के अनुसार व जलवायु संबंधी कारकों के प्रभाव के कारण काट ली जाती हैं। फलियां अधिक सूखने पर खेत में ही चटक सकती हैं अतः फसल को खेत में अधिक सुखाकर नहीं काटना चाहिए। हरी फसल की कटाई करने पर, सूखने पर दाने फलियों में चिपक जाते हैं, सिकुड़ते हैं तथा उपज में कमी आती है। एक सप्ताह तक पौधों को सुखाकर बैलों को उस पर चलाकर मडाई का कार्य पूरा करते हैं। बीज को भंडार में रखते समय 3-4 दिन तक सुखाते हैं जिससे कि दानों में नमी की प्रतिशत 10-12 तक रह जाए।
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